Friday, March 01, 2013

विचारों का पदार्थीकरण

हमारी सम्पूर्ण सृष्टि एक विचार का परिणाम है। ब्रह्म के एक विचार का परिणाम। क्या है ब्रह्म? "वर्धति इति  ब्रह्म" ...जो निरंतर बढ़ रहा है वही ब्रह्म है। क्या था उसका विचार? "एको अहम्, बहुश्यामः" .."मैं एक हूँ, अनेक हो जाऊँ" हमारी सम्पूर्ण सृष्टि इसी एक विचार का पदार्थीकरण है और इन्हीं पदार्थों का रूपान्तरण है, वह सब कुछ, जिनका निर्माण मनुष्य अपने उपभोग या उपयोग के लिए निरंतर करता  रहता है। निष्कर्ष यह, कि इस संसार में जो कुछ भी आदमी ने अपने उपभोग, अपभोग, उपयोग, दुरुपयोग के लिए बनाया है वह उसके किसी न किसी विचार का ही पदार्थ-रूप है। आदमी अपना सारा समय अपने विचारों के पदार्थीकरण में व्यतीत करता है। उसके सारे प्रयत्न उसका सारा उद्यम अपने विचारों को पदार्थ-रूप देने के लिए है। पहले कहा है कि हम जिसे पदार्थीकरण कह रहे हैं वह वास्तव में पदार्थों का रूपांतरण है। अपने विचारों को पदार्थ-रूप देने के लिए, या पदार्थों का रूप परिवर्तित करने के लिए हम जो भी प्रयत्न करते हैं उसके परिणाम ही हमारे सुख-दुःख, संतोष-असंतोष और हमारी सफलता-विफलता के लिए उत्तरदाई होते हैं। यही हमें यह भी समझ लेना चाहिए कि अपने प्रयत्नों के परिणामों के विश्लेषण तथा आकलन के लिए ज़िम्मेदार हैं हमारी सूचनाएँ। सूचना क्या है? वह सारी जानकारी जो हम अपनी पाँचों ज्ञानेन्द्रियों  के माध्यम से अपने बाहर के संसार से ग्रहण करते हैं और अपनी स्मृति में संगृहीत करते हैं। सामान्य व्यावहारिक जीवन में हमारे द्वारा अर्जित यही सूचनाएँ हमारे प्रयासों की भी दिशा निर्धारित करती हैं और हमारे प्रयासों के परिणामों के विश्लेषण की भी।
विचारों और उनके पदार्थीकरण की प्रकृति-प्रदत्त यांत्रिकी को समझना, इसलिए आवश्यक है कि हम निरंतर जिस काम में व्यस्त रहते हैं उसमें आनंद बना रहे। इस विषय की नासमझी के कारण अपनी ही इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपने ही द्वारा किए जाने वाले उद्यमों के दौरान भी और उनके परिणाम आने के उपरांत भी हम अक्सर दुखी और तनावग्रस्त हो जाते हैं (जारी........)
-पवन श्री

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